कलह से दरिद्रता, कहानी

कलह से दरिद्रता


एक बहुत धनवान् व्यक्ति के यहाँ चार बेटों की चार बहुएँ आई। वे बड़े उग्र और असहिष्णु स्वभाव की थीं, आपस में रोज ही लड़ती। दिन-रात गृह-कलह ही मचा रहता। इससे खिन्न होकर लक्ष्मी जी ने वहाँ से चले जाने की ठानी। रात को लक्ष्मी ने उस सेठ को स्वप्न दिया कि अब मैं जा रही हूँ। यह कलह मुझसे नहीं देखा जाता। जहाँ ऐसे लड़ने झगड़ने वाले लोग रहते हैं वहाँ मैं नहीं रह सकती।


सेठ बहुत गिड़गिड़ाकर रोने लगा, लक्ष्मी के पैरों से लिपट गया और कहा मैं आपका अनन्य भक्त रहा हूँ। मुझे छोड़कर आप जावे नहीं। लक्ष्मी को उस पर दया आई और कहा-कलह के स्थान पर मेरा ठहर सकना तो संभव नहीं। ऐसी स्थिति में अब मैं तेरे घर तो किसी भी प्रकार न रहूँगी पर और कुछ तुझे माँगना हो तो एक वरदान मुझ से माँग ले।

धनिक ने कहा-अच्छा माँ यही सही। आप यह वरदान दें कि मेरे घर के सब लोगों में प्रेम और एकता बनी रहे। लक्ष्मी ने ‘एवमस्तु’ कह कर वही वरदान दे दिया और वहाँ से चली गई। दूसरे दिन से ही सब लोग प्रेम पूर्वक रहने लगे और मिल-जुल कर सब काम करने लगे।

एक दिन धनिक ने स्वप्न में देखा कि लक्ष्मी जी घर में फिर वापिस आ गई हैं। उसने उन्हें प्रणाम किया और पुनः पधारने के लिए धन्यवाद दिया। लक्ष्मी ने कहा-इसमें धन्यवाद की कोई बात नहीं है। मेरा उसमें कुछ अनुग्रह भी नहीं है। जहाँ एकता होती है और प्रेम रहता हूँ वहाँ तो मैं बिना बुलाये ही जा पहुँचती हूँ।

जो लोग दरिद्रता से बचना चाहते हैं और घर से लक्ष्मी को नहीं जाने देना चाहते उन्हें अपने घर में कलह की परिस्थितियाँ उत्पन्न नहीं होने देनी चाहिए।
कलह से दरिद्रता, कहानी कलह से दरिद्रता, कहानी Reviewed by Kanchan Ji on February 02, 2022 Rating: 5

No comments:

Powered by Blogger.