सिद्धान्तों और व्यवहार कुशलता में सामञ्जस्य हो
एक जंगल में एक महात्मा रहा करते थे। वे नित्य अपने शिष्यों को उपदेश दिया करते थे। एक दिन उन्होंने अपने शिष्यों को उपदेश दिया कि सर्वप्राणियों में परमात्मा का निवास है। अतः सभी का सम्मान करो और नमन करो। एक दिन उनका एक शिष्य बन में लकड़ियाँ लेने गया। उस दिन वहाँ यह शोर मचा हुआ था कि जंगल में एक पागल हाथी घूम रहा है। उससे बचने के लिए भागो। शिष्य ने सोचा कि हाथी में भी तो परमात्मा का निवास है मुझे क्यों भागना चाहिए। वह वहाँ ही खड़ा रहा। हाथी उसी की ओर चला आ रहा था।
लोगों ने उसे भागने को कहा किन्तु वह टस से मस नहीं हुआ। इतने में हाथी पास में आया और उसे सूँड़ से पकड़कर दूर फेंक दिया। शिष्य चोट खाकर बेहोश हो गया। यह खबर गुरु को लगी तो वे उसे तलाश करते हुए जंगल में पहुँचे। कई शिष्यों ने उसे उठाया और आश्रम में ले आये और आवश्यक चिकित्सा की तब कहीं शिष्य होश में आया। एक शिष्य ने कुछ समय बाद उससे पूछा “क्यों भाई जब पागल हाथी तुम्हारी ओर आ रहा था तो तुम वहाँ से भागे क्यों नहीं?” उसने कहा—
“गुरुजी ने कहा था कि सब भूतों में नारायण का वास है यही सोचकर मैं भागा नहीं वरन् खड़ा रहा।” गुरुजी ने कहा “बेटा हाथी नारायण आ रहे थे यह ठीक है किन्तु अन्य लोगों ने जो भी नारायण ही थे तुम्हें भागने को कहा तो क्यों नहीं भागे?”
सब भूतों में परमात्मा का वास है यह तो ठीक है किन्तु मेल−मिलाप भले और अच्छे आदमियों से ही करना चाहिए। व्यावहारिक जगत में साधु−असाधु, भक्त −अभक्त , सज्जन-दुर्जनों का ध्यान रखकर व्यवहार व सम्बन्ध रखना चाहिए। जैसे किसी जल से भगवान की पूजा होती है, किसी से नहा सकते हैं, किसी से कपड़ा धोने एवं बर्तन माँजने का ही काम चलाते हैं। किसी जल को व्यवहार में ही नहीं लाते। वैसे जल देवता एक ही है। इसी प्रकार संसार में भी व्यवहार करना चाहिए।
सिद्धान्तों और व्यवहार कुशलता में सामञ्जस्य हो ,कहानी
Reviewed by Kanchan Ji
on
February 07, 2022
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