२- आँख-मिचौनी के खेल में 'गोल' छु लेने पर फिर चोर नहीं होना पड़ता, उसी प्रकार ईश्वर को छूने पर फिर सांसारिक बन्धन नहीं बाँधते।
३- लोहा जब एक बार पारस को छूकर सोना हो जाता है, तब चाहे उसे मिट्टी के भीतर रखो या कूड़े में फेंक दो। वह जहाँ रहेगा सोना ही रहेगा, लोहा न होगा। इसी प्रकार जो ईश्वर को पा चुका है, वह बस्ती में रहे, चाहे जंगल में, उसको फिर दाग नहीं लग सकता।
४- ईश्वर को प्राप्त कर लेने पर मनुष्य का आकार वही रहता है, परंतु उससे अशुभ कर्म नहीं होते।
५- ईश्वर का दर्शन कर लेने पर मनुष्य फिर जगत के जंजाल में नहीं पड़ता, ईश्वर को छोड़कर एक क्षण भी उसे शान्ति नहीं मिलती, एक क्षण भी ईश्वर को छोड़ने में मृत्यु-कष्ट होता है।
६- ईश्वर के पास जाने के अनेकों उपाय हैं। सभी धर्म इसी के उपाय दिखला रहे हैं।
७- हे मनुष्यो ! तुम संसार की वस्तुओं में भूले हुए हो, यह सब छोड़कर जब तुम ईश्वर के लिये रहोगे, तब प्रभु उसी वक्त आकर तुम्हें गोद में उठा लेंगे।
८- ईश्वर को देखना चाहते हो, तो माया को हटा दो।
९- इस सत्य को धारण करो कि भगवान् न पराये हैं, न तुमसे दूर हैं और न दुर्लभ ही हैं।
१०- जिसने तुम्हें यहाँ भेजा है, उसने तुम्हारे भोजन का प्रबन्ध पहले से कर रखा है।
११- जिसकी साधना करने की तीव्र उत्कण्ठा होती है, भगवान् उसके पास सद्गुरु भेज देते हैं। गुरु के लिये साधकों को चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
१२- मनुष्य देखने में कोई रूपवान्, कोई कुरूप, कोई साधु, कोई असाधु देख पड़ते हैं, परंतु उन सबके भीतर एक ही ईश्वर विराजते हैं।
१३- दुष्ट मनुष्य में भी ईश्वर का निवास है, परंतु उसका संग करना उचित नहीं।
१४- साधनावस्था में ऐसे मनुष्यों से, जो उपासना से इठट्ठा करते हैं, धर्म तथा धार्मिकों की निन्दा करते हैं, एकदम दूर रहना चाहिये।
१५- माया को पहचान लेने पर वह तुरंत भाग जाती है।
१६- दूध में मक्खन रहता है, पर मथने से ही निकलता है। वैसे ही जो ईश्वर को जानना चाहे वह उसका साधन-भजन करे।
१७- एक ज्ञान-ज्ञान, बहुत ज्ञान-अज्ञान ।
१८- ईश्वर साकार-निराकार और क्या-क्या है, यह हम लोग नहीं जानते। तुम्हें जो अच्छा लगे उसी में विश्वास कर उसे पुकारो, तुम उसी के द्वारा उसे पाओगे। मिश्री की डली चाहे जिस ओर से, चाहे जिस ढंग से तोड़कर खाओ मीठी लगेगी ही।
१९- मन सफेद कपड़ा है, इसे जिस रंग में डुबोओगे वही रंग चढ़ जाएगा।
२०- व्याकुल प्राण से जो ईश्वर को पुकारते हैं, उनको गुरु करने की आवश्यकता नहीं है।
२१- सच्चा शिष्य गुरु के किसी बाहरी काम पर लक्ष्य नहीं करता। वह तो केवल गुरु की आज्ञा को ही सिर नवाकर पालन करता है।
२२- पतंगें एक बार रोशनी देखने पर फिर अन्धकार में नहीं जाता, चीटियाँ गुड़ में प्राण दे देती हैं, पर वहाँ से लौटती नहीं। इसी प्रकार भक्त
जब एक बार प्रभु-दर्शन का रसास्वादन कर लेते हैं, तो उसके लिये प्राण दे देते हैं, पर लौटते नहीं।
२३- संसार में रहकर जो साधन कर सकते हैं, यथार्थ में वे ही वीर पुरुष हैं।
२४- संसार में रहकर सब काम करो, पर ख्याल रखो कहीं ईश्वर के लक्ष्य से मन हट न जाए।
२५- कुलटा स्त्रियाँ, माता-पिता तथा परिवार वालों के साथ रहकर संसार के सभी कार्य करती हैं, परंतु उनका मन सदा अपने ईश्वर में लगा रहता है। हे संसारी जीव ! तुम भी मन को ईश्वर में लगाकर माता-पिता तथा परिवार का काम करते रहो।
२६- ईश्वर के दर्शन की इच्छा रखने वालों को नाम में विश्वास तथा सत्या-सत्यका विचार करते रहना चाहिये।
२७- मन को स्वतन्त्र छोड़ देने पर वह ना-ना प्रकार के संकल्प, विकल्प करने लगता है, परन्तु विचार रूपी अंकुश से मारने पर वह स्थिर हो जाता है।
२८- हरि नाम सुनते ही जिसकी आँखोंसेक्ष सच्चे प्रेमाश्रु बह निकलते हैं, वही नाम-प्रेमी है।
२९- डुबकी लगाते ही जाओ, रत्न अवश्य मिलेगा। धीरज रखकर साधना करते रहो, यथा समय अवश्य ही तुम्हारे ऊपर ईश्वर की कृपा होगी।
३०- साधुसंग को धर्म का सर्वप्रधान अङ्ग समझना चाहिये।
३१-मरने के समय मन में जैसा भाव होता है, दूसरे जन्म में वैसी ही गति होती है, इसलिये जीवनभर भगवान के स्मरण की आवश्यकता है। जिससे मृत्यु के समय केवल भगवान ही याद आवें।
३२- बालक की नाईं रोना ही साधक का एकमात्र बल है।
३३- फल के बड़े होने पर फूल अपने-आप गिर जाता है; इसी प्रकार देवत्व के बढ़ने से नरत्व नहीं रहता।
३४- मनुष्य तभी तक धर्म के विषय में तर्क-वितर्क करता है, जबत क उसे धर्म का स्वाद नहीं मिलता। स्वाद मिलने पर वह चुपचाप साधन करने लगता है।
३५- साधक जब गद्गद हो पुकारता है, तब प्रभु विलम्ब नहीं कर सकते।
३६- ईश्वर के अनन्त नाम हैं, अनन्त रूप हैं, अनन्त भाव हैं। उसे किसी नाम से किसी रूप से और किसी भाव से कोई पुकारे वह सब की पुकार सुन सकता है; वह सब की मनःकामना पूरी कर सकता है।
३७- परमात्मा एक है, उसको अनेक लोग अनेक भावों से भजते है।
३८- जिस हृदय में ईश्वर का प्रेम प्रवेश कर गया हो, उस हृदय से काम, क्रोध, अहंकार आदि सब भाग जाते हैं। वे फिर नहीं ठहर सकते।
३९- सब धर्मो का आदर करो, पर अपने मन को अपनी ही धर्मनिष्ठा से तृप्त करो।
४०- साधन-भजन के द्वारा मनुष्य ईश्वर को पाकर फिर अपने धाम को लौट जाता है
४१- ईश्वर हम लोगों के निजके हैं, वह हम लोगों की अपनी माता हैं। उनके पास हम लोगों का जोर करना, मचलना चल सकता है।
४२- ईश्वर अपने आने के पूर्व साधक के हृदय में प्रेम, भक्ति, विश्वास तथा व्याकुलता पहले ही भर देते हैं।
४३- हृदय स्थिर होने से ही ईश्वर.का दर्शन होता है। हृदय सरोवर में जब तक कामना की हवा बहती रहेगी, तब तक ईश्वर का दर्शन असम्भव है।
४४- सच्चे विश्वासी भक्त का विश्वास तथा भक्ति किसी प्रकार नष्ट नहीं होती। भगवान की चर्चा होते ही वह उन्मत्त हो उठता है ।
४५- विश्वासी भक्त ईश्वर के सिवा सांसारिक धन-मान कुछ भी लेना नहीं चाहता।
४६- संसार में ईश्वर ही केवल सत्य है और सभी असत्य है।
४७- दुर्लभ मनुष्य-जन्म पाकर जो व्यक्ति ईश्वर की प्राप्ति के लिये यत्न नहीं करता उसका जन्म वृथा ही है।
४८- ईश्वर में भक्ति और अटूट निष्ठा करके संसार का सब काम करने में जीव संसार-बन्धन में नहीं पड़ता।
४९- जो ईश्वर का चरण-कमल पकड़ लेता है, वह संसार से नहीं डरता।
५०- ईश्वर के चरण-कमल पकड़कर संसार का काम करो, बन्धन का डर नहीं रहेगा।
५१- पहले ईश्वर-प्राप्ति का यत्न करो, पीछे जो इच्छा हो कर सकते हो।
५२- जो ईश्वर पर निर्भर करते हैं, उन्हें ईश्वर जैसे चलाते हैं, वैसे ही चलते हैं, उनकी अपनी कोई चेष्टा नहीं होती।
५३- गुरु लाखों मिलते हैं, पर चेला एक भी नहीं मिलता। उपदेश करने वाले अनेकों मिलते हैं, पर उपदेश पालन करने वाले विरले ही रहते है।

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