जीवन की 50 अनमोल बातें - भाग 8


३५१- जहाँ कोई आशा न रही, वहीं भगवान् रहते हैं। आशा को जड़ से उखाड़कर फेंक दे।


३५२- चित्त शुद्ध करके भाव से भगवान का गीत गाओ।

३५३- लोगों के लिये, लोग अच्छा कहें इसलिये परमार्थ करना चाहते हो तो मत करो। भगवान को चाहते हो, तो भगवान को भजो।

३५४- भगवान की लगन हो तो देह भाव को शून्य करके भगवान को भजो।

३५५- प्रभु जिसके लिये जो मार्ग ठीक है, वह दिखा देता है। वह बड़ा दयालु है।

३५६- नेत्रों से साँवरे प्यारे को देख। देख उन्हें जिनमें छहों शास्त्र, चारों वेद और अठारहों पुराण एकीभूत हैं। एक क्षण भी दुःसंग न कर। विष्णुसहस्त्र नाम जपा कर ।

३५७- अपना हृदय श्रीहरि को दे डाले। चित्त हरि को देने से वह नवनीत के समान मृदु होता है।

३५८- भाव-शुद्धि होने पर हृदय में जो श्रीहरि हैं उनकी मूर्ति प्रकट हो जाती है।

३५९- श्रीहरि के सगुण रूप की भक्ति करना ही जीवों के लिये मुख्य उपासना है। इस सगुण-साक्षात्कार का मुख्य साधन है। हरिनाम-स्मरण और सगुण-साक्षात्कार के अनन्सर भी नाम-स्मरण ही आश्रय है।

३६०- नाम-स्मरण से ही हरि को प्राप्त करो। हरि के प्राप्त होने पर भी नाम-स्मरण ही करो। बीज और फल दोनों एक हरिनाम ही हैं।

३६१- सारा प्रपञ्च प्रारब्ध के सिर पटको और श्रीहरि को ढूँढ़ने में लगो।

३६२- सच्चा पंडित वही है, जो नित्य हरि को भजता है और यह देखता है कि सब बराबर जगत में श्रीहरि ही रम रहे हैं।

३६३- वेदों का अर्थ, शास्त्रों का प्रमेय और पुराणों का सिद्धान्त एक ही है और वह यही है कि सर्व तो भाव से परमात्मा की शरण में जाओ और निष्ठापूर्वक उसी का नाम गाओ। सब शास्त्रों के विचार का अन्तिम निरधार यही है।

३६४- उस बड़प्पन में आग लगे जिसमें भगवद्भक्ति नहीं।

३६५- मूल का सिंचन करने से उसकी तरी समस्त वृक्ष में पहुँचती है। पृथक्के फेर में मत पड़ो। जो सार वस्तु है, उसे पकड़े रहो।

३६६- पतिव्रता के लिये जैसे पति ही प्रमाण है, वैसे ही हमारे लिये नारायण हैं।

३६७- बीज पूँजकर लाई बना डाली, अब जन्म-मरण कहाँ रहा?

३६८- राम हृदय में हैं; पर भ्रान्त जीव बाह्य विषयों पर लुब्ध होते हैं।

३६९- अपनी कोई स्वतन्त्र इच्छा न रखकर भगवान की इच्छा के अनुकूल हो जाए। माली जल को जिधर ले जाता है, जल उधर ही शान्ति के साथ जाता है। वैसे ही तुम बनो।

३७०- अंगारों की सेजपर सुख की नींद? इस दुःख भरे जगत में सुख की खोज?

३७१- संसार में कालका कलेवा बनकर कौन सुखी हुआ है ?

३७२- चाहे कोई कितना ही दिमाग खर्च करे, वह चीनी को फिर से ऊख नहीं बना सकता। ठीक उसी प्रकार भगवान को पाकर कोई जन्म-मृत्यु के चक्कर में नहीं पड़ सकता।

३७३- यह जीवात्मा आप ही अपना तारक, आप ही अपना मारक है। आप ही अपना उद्धारक है। रे नित्यमुक्त आत्मा ! जरा सोच तो सही कि तू कहाँ अटका हुआ है।

३७४- व्यक्त और अव्यक्त निःसंशय तुम्ही एक हो। भक्ति से व्यक्त और योगसे अव्यक्त मिलते हो।

३७५- जो कोई जैसा ध्यान करता है, दयालु भगवान् वैसे बन जाते हैं।

३७६- यदि मैं स्तुति करूँ तो वेदों से भी जो काम नहीं बना वह मैं कर सकता हूँ। परन्तु क्या किया जाय रसना को तो दूसरे ही सुख का चसका लग गया है।

३७७- अपने हिस्से में जो काम आया वही करता हूँ, पर भाव मेरा तेरे ही अंदर रहे। शरीर शरीर का धर्मपालन करता है, पर भीतर की बात रे मन ! तू मत भूल।

३७८- कहीं किसी और का प्रयोजन नहीं। सब जगह मेरे लिये तू-ही-तू है। तन, वाणी और मन तेरे चरणों पर रखे हैं। अब हे भगवन् ! और कुछ बचा नहीं दीखता।

३७९- आत्मबोध के लिये वैसी छटपटाहट हो जैसे जल के बिना मछली छटपटाती है।

३८०- चौपड़ के खेलों में गोटी का मारना और जीना जैसा है, ज्ञानी की दृष्टि में जीवों का बन्ध-मोक्ष भी वैसा ही है।

३८१- मुख में अखण्ड नारायण-नाम ही मुक्ति के ऊपर की भक्ति जानो।

३८२- शरीर न बुरा है, न अच्छा है, इसे जल्दी हरिभजन में लगाओ।

३८३- श्रीराम के बिना जो मुख है वह केवल चर्मकुण्ड है। भीतर जो जिह्वा है, वह चमड़े का टुकड़ा है।

३८४- एक श्रीहरि की ही महिमा गाया कर, मनुष्य के गीत न गाये।

३८५-चिन्तन के लिये कोई समय नहीं लगता, उसके लिये कुछ मूल्य नहीं देना पड़ता, सब समय ही 'राम-कृष्ण-हरि-गोविन्द' नाम जिह्वा पर बना रहे। यही एक सत्य-सार है- व्युत्पत्तिका भार केवल व्यर्थ है।

३८६- कथा-कीर्तन करके जो द्रव्य देते या लेते हैं, वे दोनों ही भूले हुए हैं।

३८७- जब तक जीवन है, तब तक नाम-स्मरण करे, गीता-भागवत श्रवण करे और हरि-हर-मूर्ति का ध्यान करे।

३८८- कर्मा-कर्मके फेर में मत पड़ो। मैं भीतरी बात बतलाता हूँ, सुनो। श्रीराम का नाम अट्टहास के साथ उचारो।

३८९- काम-वासना के अधीन जिसका जीवन होता है, उस अधम को देखने से भी असगुन होता है।

३९०- विषय-तृष्णा के जो अधीन होता है, उसी के रुख पर नाचता है, वह मदारी का बंदर-जैसा है।

३९१- हरि-हर में भेद नहीं है, झूठ-मूठ बहस मत करो। दोनों एक-दूसरे के हृदय में हैं, जैसे मिठास चीनी में और चीनी मिठास में।

३९२- भगवान् आगे-पीछे खड़े संसार का संकट निवारण करते हैं।

३९३- दो ही अक्षरका काम। उचारो श्रीराम-नाम ।

३९४- भौंरा चाहे जैसे कठिन काठ को मौज के साथ भेदकर उसे, खोखला कर देता है, परन्तु कोमल कली में आकर फँस ही जाता है। वह प्राणों का उत्सर्ग कर देगा, पर कमल दल को नहीं चौरेगा। स्नेह कोमल होने से ऐसा कठिन है।

३९५- बच्चा जब बाप का पल्ला पकड़ लेता है, तब बाप वहीं खड़ा रह जाता है, इसलिये नहीं कि बाप इतना दुर्बल है, बल्कि इस कारण से कि वह स्नेह में फँसकर वहीं गड़ जाता है। प्रीति की यही निराली रीति है।

३९६- जो श्रीहरि को प्रिय न हो वह ज्ञान भी झूठा है और वह झूठा है।

३९७- भगवन् ! मेरा मन अपने अधीन करके बिना दान दिये स्वामित्व क्यों नहीं भोगते !

३९८- बड़े का लड़का यदि दीन-दुखी दिखायी दे तो हे भगवन् ! लोग किसको हँसेंगे? लड़का चाहे गुणी न हो, स्वच्छता से रहना भी न जानता हो तो भी उसका लालन-पालन तो करना ही होगा। वैसा ही मैं भी एक पतित हूँ, पर आपका मुद्राङ्कित हूँ।

३९९- संत का लक्षण क्या है? प्राणि-मात्र पर दया।

४००- भगवान् भक्त के उपकार मानते हैं, भक्त के ऋणी हो जाते हैं।

जीवन की 50 अनमोल बातें - भाग 8 जीवन की 50 अनमोल बातें - भाग 8 Reviewed by Vishant Gandhi on October 28, 2020 Rating: 5

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